जख्मी तुम्हारी बात से दिल हुआ मेरा जरुर
आँख में आंसू हैं फिर भी मुस्कुराएंगे जरुर
हंस दिए थे गरूर से वे मुझको रोता देखकर
एक दिन हंसकर वे मेरे पास आयेंगे जरुर
एक नन्हीं नाव यह बोली नदी की धार से
चाहे जितना जोर कर लो पर जायेंगे जरुर
कितने परवाने जले जलकर हुए वे ढेर भी
हम भी उनके प्यार में ख़ुद को जलाएंगे जरुर
हम भी इंसा हैं अगर पत्थर समझ लो तुम मुझे
फिर भी तेरी ठोंकरों पे जान लुटायेंगे जरुर
रात भर रोते रहे लेकिन सुबह होते ही फिर
राह में तेरी ही हम पलकें बिछायेंगे जरुर
Sunday, March 29, 2009
Sunday, January 4, 2009
बादलों में तुम अपना चेहरा छुपाते क्यो हो
बादलों में तुम अपना चेहरा छुपाते क्यों हो?
ऐसे तुम याद मुझको अपनी दिलाते क्यों हो ?
भोरों को प्यार है फूलों से ये मन मैंने
वो नगमा प्यार का फ़िर याद दिलाते क्यो हो ?
रातों को तो मुश्किल से नींद आती है मुझको
उसमें भी आके मुझे अक्सर जगाते क्यो हो ?
दिल मेरा शीशे का घर है तुम्हारी यादों का
बेवफाई के पत्थर से उसको दर्काते क्यो हो ?
मैंने तो सोचा न था ऐसे तुम बेवफा होगे
किए हैं जुल्म तो फ़िर आंख करते क्यों हो ?
मैंने चाहां था उड़ना नीले आसमानों में
कुतरकर पर मेरे फ़िर आसमा दिखाते क्यों हो ?
ऐसे तुम याद मुझको अपनी दिलाते क्यों हो ?
भोरों को प्यार है फूलों से ये मन मैंने
वो नगमा प्यार का फ़िर याद दिलाते क्यो हो ?
रातों को तो मुश्किल से नींद आती है मुझको
उसमें भी आके मुझे अक्सर जगाते क्यो हो ?
दिल मेरा शीशे का घर है तुम्हारी यादों का
बेवफाई के पत्थर से उसको दर्काते क्यो हो ?
मैंने तो सोचा न था ऐसे तुम बेवफा होगे
किए हैं जुल्म तो फ़िर आंख करते क्यों हो ?
मैंने चाहां था उड़ना नीले आसमानों में
कुतरकर पर मेरे फ़िर आसमा दिखाते क्यों हो ?
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