बादलों में तुम अपना चेहरा छुपाते क्यों हो?
ऐसे तुम याद मुझको अपनी दिलाते क्यों हो ?
भोरों को प्यार है फूलों से ये मन मैंने
वो नगमा प्यार का फ़िर याद दिलाते क्यो हो ?
रातों को तो मुश्किल से नींद आती है मुझको
उसमें भी आके मुझे अक्सर जगाते क्यो हो ?
दिल मेरा शीशे का घर है तुम्हारी यादों का
बेवफाई के पत्थर से उसको दर्काते क्यो हो ?
मैंने तो सोचा न था ऐसे तुम बेवफा होगे
किए हैं जुल्म तो फ़िर आंख करते क्यों हो ?
मैंने चाहां था उड़ना नीले आसमानों में
कुतरकर पर मेरे फ़िर आसमा दिखाते क्यों हो ?
Sunday, January 4, 2009
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