जख्मी तुम्हारी बात से दिल हुआ मेरा जरुर
आँख में आंसू हैं फिर भी मुस्कुराएंगे जरुर
हंस दिए थे गरूर से वे मुझको रोता देखकर
एक दिन हंसकर वे मेरे पास आयेंगे जरुर
एक नन्हीं नाव यह बोली नदी की धार से
चाहे जितना जोर कर लो पर जायेंगे जरुर
कितने परवाने जले जलकर हुए वे ढेर भी
हम भी उनके प्यार में ख़ुद को जलाएंगे जरुर
हम भी इंसा हैं अगर पत्थर समझ लो तुम मुझे
फिर भी तेरी ठोंकरों पे जान लुटायेंगे जरुर
रात भर रोते रहे लेकिन सुबह होते ही फिर
राह में तेरी ही हम पलकें बिछायेंगे जरुर
Sunday, March 29, 2009
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