Sunday, March 29, 2009

जख्मी तुम्हारी बात से

जख्मी तुम्हारी बात से दिल हुआ मेरा जरुर
आँख में आंसू हैं फिर भी मुस्कुराएंगे जरुर

हंस दिए थे गरूर से वे मुझको रोता देखकर
एक दिन हंसकर वे मेरे पास आयेंगे जरुर

एक नन्हीं नाव यह बोली नदी की धार से
चाहे जितना जोर कर लो पर जायेंगे जरुर

कितने परवाने जले जलकर हुए वे ढेर भी
हम भी उनके प्यार में ख़ुद को जलाएंगे जरुर

हम भी इंसा हैं अगर पत्थर समझ लो तुम मुझे
फिर भी तेरी ठोंकरों पे जान लुटायेंगे जरुर

रात भर रोते रहे लेकिन सुबह होते ही फिर
राह में तेरी ही हम पलकें बिछायेंगे जरुर