Friday, December 26, 2008

ये दोस्त तुम्हें याद हो न याद हमारी

ये दोस्त तुम्हे याद हो न याद हमारी
हमको तो साडी उम्र आई याद तुम्हारी

हमने तो खिजाओं में बस फूल हैं ढूंढे
बहार की उम्मीद सी है याद तुम्हारी

दूर रहकर भी बहुत पास तो रहते हो तुम
मेरी सांसों में बसी खुशबु सी है याद तुम्हारी

खवाबो के परिंदे भी उड़कर हर चले हैं
फिर भी नजर न आई सूरत वो तुम्हारी

शायद कंही शहरा में कोई फूल खिल उठे
ऐसा ही कोई खवाब सी है याद तुम्हारी

तेरी यादों से ही रोशन है बस्ती मेरे दिल की
कितनी की कोशिशें न भूली याद तुम्हारी

Tuesday, December 16, 2008

कानों में जाने क्या कहती हंसती जाती पुरवाई

कानों में जाने क्या कहती हंसती जाती पुरवाई
यादों की महफिलें सजाती महकी महकी पुरवाई

जेठ माह की गर्मी बीती जलता था जैसे तनमन
मन में कैसी पुलक जगाती इठलाती है पुरवाई

सखियों के संग लग गए झूले संग गाती है पुरवाई
फ़िर आयेंगे मेरे साजन आस जगाती पुरवाई

बहुत जली मै बिरहा में अब तो थोड़ा हंस लूँ गलूं
शायद ऐसा ही कुछ सोचे मुझे छेड़ती पुरवाई

किसको क्या मालूम की उनबिन कैसे काटे मैंने
अब सूने जीवन में खुशियों के रंग भर रही पुरवाई

हवाओं में ऐसी

हवाओं में ऐसी खुशबु पहले कभी न थी
ये चाल उसकी बहकी पहले कभी न थी

जुल्फ ने खुलके उसका चेहरा छुपा लिया
घटा आसमा पे ऐसी पहले कभी न थी

ऑंखें तरस रहीं हैं दीदार को उनके
दिल में तो ऐसी बेबसी पहले कभी न थी

फूलों पे रख दिए हैं शबनम ने कैसे मोती
फूलों पे ऐसी रौनक पहले कभी न थी

यादों की दस्तकों ने दरे दिल को खटखटाया
आती थी याद पहले पर ऐसी कभी न थी


में

Wednesday, December 3, 2008

ये किस कसूर की सजा मुझे दी है तुमने

ये किस कसूर की सजा मुझे दी है तुमने
मेरी आँखों में इक नदी छुपा दी है तुमने

हवा चले न चले हरदम दहकती रहती है
मेरे दिल में ये कैसी आग लगा दी है तुमने

आँखें झरती हैं तुम्हें याद करने से पहले
मेरे दिल में ये कैसी चाह जगा दी है तुमने

मौत के नाम से ही डर लगा करता था
मुझको हर साँस में मरने की सजा दी है तुमने

Tuesday, December 2, 2008

वो लम्हा जो तुम्हारे साथ गुजरा था

वो लम्हा जो तुम्हारे साथ गुजरा
\
वो लम्हा जो तुम्हारे साथ गुजरा था वो अच्छा था
वो लम्हा फ़िर से हम एक बार जी पाते तो अच्छा था

तुम्हें जब याद करते हैं अश्क आंखों से झरते हैं
तुम इन अश्कों को गर मोती बना लेते तो अच्छा था

वही हैं चाँद तारे फूल कलियाँ सब नज़ारे हैं
तुम्हारी ही कमी है इक जो तुम आते तो अच्छा था

वो नगमा प्यार का जो हमने तुमने गुनगुनाया था
वो नगमा फ़िर से हम एक बार जा पाते तो अच्छा था

दूर जाकर तो जैसे भूल बैठे हो मुझे लेकिन
कभी आकर चमन दिल का खिला जाते तो अच्छा था

तुमको रूठे हुए भी कितना अरसा बीत गया है
तुम वो shikve सभी गर भूल जो पाते तो अच्छा था

कोई तो है जो हर पल ही

कोई तो है जो हरपल ही हमारे साथ रहता है
हमारे साथ हँसता है हमारे साथ रोता है

कभी खामोश रातों में मुझे आवाज देता है
किसी ख्वाबों की दुनिया में मुझे फ़िर ले के जाता है

न आती नींद है जब रात की बेचैन करवट में
थपकियाँ दे दे के मुझको कोई गाकर सुलता है

तनहइयो में जब कभी आंसू बहाता हूँ
पोछकर अश्क मेरे वो मेरे गम को भुलाता है

वो अपना है मेरा अपना मुझे अहसास होता है
मेरे हर गम में बढ़के हाथ मेरा थाम लेता है

की उसके दिल की हर धड़कन मुझे महसूस होती है
की जैसे मेरे सीने में ही उसका दिल धड़कता है

फूलो में बसी खुशबु सा

फूलों में बसी खुशबू सा दिल में बसा कोई
हाथों में रची मेहंदी सा प्यारा सा है कोई

दिल के हजार परदों में छुपकर है रख लिया
मेरी उम्मीद मेरी जिन्दगी अरमान सा कोई

तन्हाई में चुपचाप उससे बात होती है
भवरों की गुनगुनाहट की आवाज सा कोई

हवाओ में खुशबु की तरह वो घुला सा है
मेरी जिन्दगी के हसींन ख्वाब सा कोई

मेरे वजूद में ऐसे छुपा छुपा सा है
दिल में किसी मीठे से अरमान सा कोई

सहराओं में कोई हसींन फूल सा खिला
मन की दुनिया में बजता मीठा सा साज सा कोई

Friday, November 14, 2008

कैसे टूटे दिल के रिश्ते

कैसे टूटे दिल के रिश्ते तुमको आज बताऊँ क्या
मैंने कितने आंसू रोये तुमको आज बताऊँ क्या

त्याग तपस्या झूठी हो गई प्यार हुआ बेमानी जब
गुजर गए मुह फेर के जब वो उनको अब समझाऊ क्या

तिनका तिनका नीड़ बनाया सोये सुख सपनों में हम
उडा ले गई आंधी उनको कैसे हुआ बताऊँ क्या

नाज बहुत था जिनपर मुझको रूप दिखा जब उठा नकाब
उस चेहरे पर क्या क्या कुछ था तुमको आज बताऊँ क्या

झूठे रिश्ते झूठी चाहत औ आँखों में चालाकी
अपनों ने दी ये सौगातें औरों को समझाऊ क्या

उन्हें फूल ही फूल मिले थे मुझको कांटे ही कांटे
चुभे ह्रदय में आँख भर गई दिल को अब समझाऊ क्या

निकली आह ह्रदय में कोई मन तदपा तन्हाई में
गम को मेरे वे न समझे उनको अब समझाऊ क्या

Wednesday, November 12, 2008

जिन नयनो से

जिन नयनों से नयन मिलें हैं
उन नयनों का हाल न पूछो
हम तो ठगे रह गए ऐसे
क्या था दिल का हाल न पूछो

कवियों ने क्या लिखा नयन पर
सरे काव्य धरे रह जाते
देख अगर जो इनको पाते
क्या होता फ़िर काव्य न पूछो

रातों से स्याही लेकर और
बिजली से चमकार न पूछो
झुकी झुकी नजरों से देखो
कर गए दिल कंगाल न पूछो

सागर की गहरे है पर
उन नयनों में डूबे ऐसे
पर उतरने को भी कोई
है कोई भी नाव न पूछो

आँखें क्या हैं कमल पंखडी
भवरें कैद हो गए इनमें
ऑंखें हैं या मधु के प्याले
पीनेवाले का हाल न पूछो

सबकी राह भुला दे ऐसी
मंजिल की पहचान न पूछो
उनकी नयनों की गलियों में
लुट गए कैसे ये मत पूछो

जीना मरना मुस्किल करके
चल देंगे एक रोज कोई दिन
जिनके हाल बेहाल हुए हैं
उन सब दिल के हाल न पूछो

शब्द हो गए कितने बेवश
कैसे भला बता पायें वो
काजल रात अंधेरे भवरे
किससे उपमा करें न पूछो

Tuesday, November 11, 2008

कितने महलों को बनाकर

कितने महलों को बनाकर के मिटा देती है याद्
मुझको हर रोज नए ख्वाब दिखा देती है याद
दिल में चुपचाप मचलती हैं जो सरगोशियाँ
aur उनको भी तो अश्क बना देती ही याद
जब कभी आँखों से उतर दिल में समां जाते हैं वे
आग इक दिल में मुहब्बत की लगा देती है याद
रोज खिल जाते हैं नये फूल नई खुशबु के
फ़िर भी कोई पीर पुरानी तो जगा ही देती है याद
जिंदगी नाम है दुश्वारियों के सहरा का क्या करें
अकसर जिसमे नए गुलों को खिला देती है याद

Monday, November 10, 2008

कैसी थीं अंधियारी रातें

कैसी थी अंधियारी रातें अबके सावन में
आंसू बन बरसे थे बादल अबके सावन में

था रंगी मौसम हाथों में हाथ तुम्हारा था
तुमसे बिछड़ कर खूब थे रोये अबके सावन में

थी नहीं मंजूर ज़माने को मेरी कोई खुशी
दर्द के सैलाब थे उमडे अबके सावन में

शोर झमाझम का और बढाता है मेरा गम
नींद न आई पलक द्वारे अबके सावन में

जाने कैसी आग लगायी बैरी पानी ने
जिस्मों जा रहे हैं जलते अबके सावन में
कैसी थी बरसात आसमा सिसक सिसक कर रोया
आँचल अश्कों से भीग गया था अबके सावन में

मन में कोई टीस

मन में कोई टीस उठी शायद
नम आँख हुई थी तब शायद

कैसे जन्मों के रिश्ते थे
इक चोट में टूट गए शायद

कोई दर्द उठा तन्हाई में
कोई याद आया होगा शायद

जब ख्वाब दिलों के टूट गए
जिंदगी तब रूठ गई शायद

हमसे बहार जब रूठी थी
पतझर आया होगा शायद

मेरे गम से ग़मगीन हुई
ये हवा सिसकती है शायद

कोई तो है

कोई तो है जो हर पल ही हमारे साथ रहता है
हमारे साथ हँसता है हमारे साथ रोता है

कभी खामोश रातों में मुझे आवाज देता है
किसी खवाबों की दुनिया में मुझे फ़िर लेके जाता है

न आती नींद है जब रात की बेचैन करवट में
थपकियाँ दे दे के मुझको कोई गाकर सूलाताh

तनहइयो में जब कभी आंसू बहता हूँ
पोछकर अश्क मेरे वो मेरे गम को भुलाता है

वो अपना है मेरा अपना मुझे महसूस होता है
मेरे हर गम में बढ़कर हाथ मेरा थाम लेता है

की उसके दिल की हर धड़कन मुझे महसूस होती है
इक जैसे मेरे सीने में ही उसका दिल धड़कता है

ऐसे तुम मुझको

ऐसे तुम मुझको बेरुखी से सताया न करो
बेवफा कहके मुझे ऐसे रुलाया न करो

जब से बिछुडे हो अश्क बहती है मेरी ऑंखें
बर्बाद करके मुझको मुस्कुराया न करो

काटों भरीं हैं रहें और गहरी है तन्हाई
हस हस के मेरे गम को बढाया न करो

जिंदगी की रह में कुछ और भी गम हैं
इक खुशी थी प्यार की उसको घटाया न करो

नाम लिखकर मेरा किसी ख़त में अपने
बेदर्दी से तुम उसको ऐसे मिटाया न करो

बेदर्दी से तुम उसको ऐसे मिटाया न करो

जी तो करता है

जी तो करता है कोई ख्वाब बाँहों में भर लें

लेकिन उड़ जाते हैं पल में हम उनको क्या बोलें

छोटे छोटे ख्वाब आए अपने ना हुए

कैसे बड़े ख्वाबों को हम दिल में पालें

लोग अकसर ही बदल जाते हैं मौसम की तरह

किस पर विश्वास करें और किसे अपना बोलें

प्यार का समंदर सा लहराता है जिनके लिए

क्या कसूर उनका जब हम ही न जुबां खोलें

जब से चाहा है उन्हें नींद न आई हमको

जी तो करता है उनकी बाँहों में जीभर सोलें

देखा तुम्हे तो

देखा तुम्हें तो आंख में तुमको छुपा लिया
जैसे युगों की प्यास ने दरिया छुपा लिया

आँचल तेरा उडा तो फूल रंग पा गए
बाकि बचे जो रंग तितलियों ने पा लिया

खुशबू का कोई झोंका लाई हवा अभी
जुल्फें खुली तो आस्मा को घटाओ ने छा लिया

जो दिल के जख्म है उन्हें अश्को की प्यास है
निगाहें उठी उनकी लगा मरहम को पा लिया

क्यो भूलकर करेंगे फिक्र मेरे गम का वे
किया मैंने जुर्म तो गमो. को पा लिया

Saturday, November 8, 2008

लगता है बसंत फ़िर

लगता है बसंत फ़िर आनेवाला है
कली कली को फूल बनानेवाला है
सूखी मुरझाई अमराई में फ़िर मौसम
भौरों की मधुगंध लुटनेवाला है
गुन गुन के स्वर में गा गा कर भवरा
फूलों के दिल में प्यार जगानेवाला है
झांक रहे हैं डाल डाल नूतन किसली
पतझर को मधुमास बनानेवाला है
हवा बहकती है मादक से मौसम में
फ़िर पिया मिलन की आस जगानेवाला ही
काटे नही कटती थी जो अंधियारी राते
उनमे मीठे ख्वाब दिखानेवाला है
कही अनकही रह गई थी कितनी बातें
प्रिय को बसंत सब बात बतानेवाला है

Friday, November 7, 2008

जिंदगी भर

जिंदगी भर जिसे चाहा उसे पाया नही मैंने
तुझे खोकर भी लगता है तुम्हे खोया नही मेंने

जुदाई का जहर पीने में गुजारी जिंदगी मेरी
मगर क्यो चैन का लमहा बिताया नही मैंने

जहा देखूं दिखाई दे उसी का चेहरा मुझको
जो चाहा भी भुलाना तो भुला पाया नही मैंने

कोई तो बात अनसुलझी रही है मेरी किस्मत में
जिसे चाहा भी सुलझाना तो सुलझाया नही मैंने

जिंदगी रेत की आंधीसी भटकाती रही मुझको
ठिकाना अपनी मंजिल का कभी पाया नही मैंने

गमों की भीड़ से

ग़मों की भीड़ से हम दूर जायें तो जायें कैसे
इस नामुराद जिंदगी से दूर जायें तो जायें कैसे
आजकल डर है हमें अपने ही रहनुमाओ से
उनसे चाहें जो बचके जीना तो फ़िर जियें कैसे
ख़ुद पेड़ ने ही झाड़ दिए सूखे हुए पत्ते
उनको चाहे जो बचाना तो बचाएँ कैसे
प्यार करने की तो अब सोचते नही हैं वे
हर घड़ी सोचते हैं की सताए तो सताएं कैसे
देखर मुझको जो झुक जाती हैं ऑंखें उनकी
जो चाहे भी मिलाना आंख तो मिलाएं कैसे

Thursday, November 6, 2008

परीचय

मैं हूँ कुसुम सीन्हा ।
मैं भारत में जन्मी हूँ और अभी अमरीका में रहती हूँ।