कैसी थी अंधियारी रातें अबके सावन में
आंसू बन बरसे थे बादल अबके सावन में
था रंगी मौसम हाथों में हाथ तुम्हारा था
तुमसे बिछड़ कर खूब थे रोये अबके सावन में
थी नहीं मंजूर ज़माने को मेरी कोई खुशी
दर्द के सैलाब थे उमडे अबके सावन में
शोर झमाझम का और बढाता है मेरा गम
नींद न आई पलक द्वारे अबके सावन में
जाने कैसी आग लगायी बैरी पानी ने
जिस्मों जा रहे हैं जलते अबके सावन में
कैसी थी बरसात आसमा सिसक सिसक कर रोया
आँचल अश्कों से भीग गया था अबके सावन में