Saturday, February 13, 2010

लगता है बसत

लगता है बसंत फिर आनेवाला है
कली कली को फूल बनानेवाला है

सुखी मुरझाई अमराई में मौसम
बौरों की मधुगंध लुटनेवाला है

गुन गुन के स्वर में गाकर भावरा
फूलों के दिल में प्यार जगानेवाला है

झाकं रहे है दाल दाल नूतन किसलय
पतझर को मधुमास बनानेवाला है

हवा बहकती है मादक से मौसम में
फिर पिया मिलन की आस जगानेवाला है

काटे नहीं कटती थी जो अधियारी रातें
उनमें मीठे ख्वाब दिखानेवाला है

कही अनकही रह गई थी कितनी बातें
प्रिय को बसंत सब बात बतानेवाला है

ये बसंती हवा

ये बसंती हवा आज पागल सी लगती है
फूलों की गंध लिए
दौड़ती सी भागती सी
पलभर ठहरती है
पेड़ों की फुनगी पर
मगर दुसरे ही पल दूर भाग जाती है
ये बसंती हवा आज पागल सी लगती है
धान के खेतों को
छेड़ छेड़ जाती है
बलखाती आती है
इतराती जाती है
कोयल की कुकू संग स्वर को मिलाती है
ये बसंती हवा आज पागल सी लगती है
अभी यहाँ अभी वहां
पता नहीं पल में कहाँ
कितनी है चंचल यह
कितनी मतवाली है
मन में जाने कैसी प्यास जगा जाती है
ये बसंती हवा आज पागल सी लगती है
फूलों के कलियों के
कानों में जाने क्या
भवरों का संदेशा
चुपके कह जाती है
सरसों के फूलों संग खिल खिल कर हंसती है
ये बसंती हवा आज पागल सी लगती है
बरगद की छाया में
थके हुए पंथी पास
पलभर को रूककर
साडी थकन चुरा जाती है
ये बसंती हवा आज पागल सी लगती है

प्रिय तुम मेरी कविता हो

प्रिय तुम मेरी कविता हो
तेरे दो चंचल मुग्ध नयन
जब शर्मा कर झुक जाते हैं
मन के आंगन में सपनों के
तब फूल सभी खिल जाते हैं
लगती उर्वशी या रम्भा हो
प्रिय तुम मेरी कविता हो
लहराते अंचल को जब तुम
बाँहों में बांध कर चलती हो
तब इन्द्र धनुष भी तेरे संग
चलने को जैसे मचलता हो
मादक सी मस्त हवा हो तुम
प्रिय तुम मेरी कविता हो
बिखरी जुल्फों के बीच कभी
मुख चाँद सा तेरा दीखता है
लगता है घने बादलों से
कोई चाँद झांकता आता है
तुम तो प्यार की भाषा हो
प्रिय तुम मेरी कविता हो
तेरी पायल की रन झुन जब
मन के सितार पर बजती है
मन मतवाला हो उठता है
जब गीत कोई तुम गाती हो
तुम प्यार का मीठा झरना हो
प्रिय तुम मेरी कविता हो
तन मन की थकन प्रिय
बस पल भर में मिट जाती है
जब मुस्काकर कुछ शरमाकर
तुम प्यार की बातें करती हो
जीवन की प्रिय तुम आशा हो
प्रिय तुम तो मेरी कविता हो

तुम मेरे हो

तुम मेरे हो
फूलों में सुगंध हो जैसे
सरिता में लहरें हों जैसे
आँखों में सपने हों जैसे
तुम मेरे हो
ताल के जल में कम्पन जैसे
गीतों में तुम सुर के जैसे
दिल में कोई अरमा जैसे
तुम मेरे हो
पलकों में आसूं हों जैसे
अम्बर में चंदा हो जैसे
वृक्षों में पल्लव हों जैसे
तुम मेरे हो
इश्वर के वरदान के जैसे
कोई मीठी चाह के जैसे
हथेलिओं पर मेहदी जैसे
तुम मेरे हो
कड़ी धुप में छाया जैसे
कोयल की कुजन के जैसे
चन्दन में खुशबु के जैसे
तुम मेरे हो

आया बसंत

प्यार भरे गीत गाता आया बसंत
पेड़ों की फुनगी पर
कोमल से पल्लव
वृक्षों के झुरमुट में
पक्षी का कलरव
फूलों की गंध लिए
गाती हवाएं हैं
तन मन झुलसती
गर्मी का हुआ अंत
प्यार भरे गीत गाता आया बसंत
टहनी पर दिखने लगी
कोमल कलिकाएं
मन के आंगन में छाये
सपनों के साए
उड़ते हैं हवा संग
फूलों के मकरद
प्यार भरे गीत गाता आया बसंत
आमों के बौरों से
होकर मतवाली
गाती है कुहू कुहू
कोयलिया काली
छेदों मत

Sunday, March 29, 2009

जख्मी तुम्हारी बात से

जख्मी तुम्हारी बात से दिल हुआ मेरा जरुर
आँख में आंसू हैं फिर भी मुस्कुराएंगे जरुर

हंस दिए थे गरूर से वे मुझको रोता देखकर
एक दिन हंसकर वे मेरे पास आयेंगे जरुर

एक नन्हीं नाव यह बोली नदी की धार से
चाहे जितना जोर कर लो पर जायेंगे जरुर

कितने परवाने जले जलकर हुए वे ढेर भी
हम भी उनके प्यार में ख़ुद को जलाएंगे जरुर

हम भी इंसा हैं अगर पत्थर समझ लो तुम मुझे
फिर भी तेरी ठोंकरों पे जान लुटायेंगे जरुर

रात भर रोते रहे लेकिन सुबह होते ही फिर
राह में तेरी ही हम पलकें बिछायेंगे जरुर

Sunday, January 4, 2009

बादलों में तुम अपना चेहरा छुपाते क्यो हो

बादलों में तुम अपना चेहरा छुपाते क्यों हो?
ऐसे तुम याद मुझको अपनी दिलाते क्यों हो ?

भोरों को प्यार है फूलों से ये मन मैंने
वो नगमा प्यार का फ़िर याद दिलाते क्यो हो ?

रातों को तो मुश्किल से नींद आती है मुझको
उसमें भी आके मुझे अक्सर जगाते क्यो हो ?

दिल मेरा शीशे का घर है तुम्हारी यादों का
बेवफाई के पत्थर से उसको दर्काते क्यो हो ?

मैंने तो सोचा न था ऐसे तुम बेवफा होगे
किए हैं जुल्म तो फ़िर आंख करते क्यों हो ?

मैंने चाहां था उड़ना नीले आसमानों में
कुतरकर पर मेरे फ़िर आसमा दिखाते क्यों हो ?