लगता है बसंत फिर आनेवाला है
कली कली को फूल बनानेवाला है
सुखी मुरझाई अमराई में मौसम
बौरों की मधुगंध लुटनेवाला है
गुन गुन के स्वर में गाकर भावरा
फूलों के दिल में प्यार जगानेवाला है
झाकं रहे है दाल दाल नूतन किसलय
पतझर को मधुमास बनानेवाला है
हवा बहकती है मादक से मौसम में
फिर पिया मिलन की आस जगानेवाला है
काटे नहीं कटती थी जो अधियारी रातें
उनमें मीठे ख्वाब दिखानेवाला है
कही अनकही रह गई थी कितनी बातें
प्रिय को बसंत सब बात बतानेवाला है