Sunday, January 4, 2009

बादलों में तुम अपना चेहरा छुपाते क्यो हो

बादलों में तुम अपना चेहरा छुपाते क्यों हो?
ऐसे तुम याद मुझको अपनी दिलाते क्यों हो ?

भोरों को प्यार है फूलों से ये मन मैंने
वो नगमा प्यार का फ़िर याद दिलाते क्यो हो ?

रातों को तो मुश्किल से नींद आती है मुझको
उसमें भी आके मुझे अक्सर जगाते क्यो हो ?

दिल मेरा शीशे का घर है तुम्हारी यादों का
बेवफाई के पत्थर से उसको दर्काते क्यो हो ?

मैंने तो सोचा न था ऐसे तुम बेवफा होगे
किए हैं जुल्म तो फ़िर आंख करते क्यों हो ?

मैंने चाहां था उड़ना नीले आसमानों में
कुतरकर पर मेरे फ़िर आसमा दिखाते क्यों हो ?