Friday, November 7, 2008

गमों की भीड़ से

ग़मों की भीड़ से हम दूर जायें तो जायें कैसे
इस नामुराद जिंदगी से दूर जायें तो जायें कैसे
आजकल डर है हमें अपने ही रहनुमाओ से
उनसे चाहें जो बचके जीना तो फ़िर जियें कैसे
ख़ुद पेड़ ने ही झाड़ दिए सूखे हुए पत्ते
उनको चाहे जो बचाना तो बचाएँ कैसे
प्यार करने की तो अब सोचते नही हैं वे
हर घड़ी सोचते हैं की सताए तो सताएं कैसे
देखर मुझको जो झुक जाती हैं ऑंखें उनकी
जो चाहे भी मिलाना आंख तो मिलाएं कैसे