ये किस कसूर की सजा मुझे दी है तुमने
मेरी आँखों में इक नदी छुपा दी है तुमने
हवा चले न चले हरदम दहकती रहती है
मेरे दिल में ये कैसी आग लगा दी है तुमने
आँखें झरती हैं तुम्हें याद करने से पहले
मेरे दिल में ये कैसी चाह जगा दी है तुमने
मौत के नाम से ही डर लगा करता था
मुझको हर साँस में मरने की सजा दी है तुमने