Wednesday, December 3, 2008

ये किस कसूर की सजा मुझे दी है तुमने

ये किस कसूर की सजा मुझे दी है तुमने
मेरी आँखों में इक नदी छुपा दी है तुमने

हवा चले न चले हरदम दहकती रहती है
मेरे दिल में ये कैसी आग लगा दी है तुमने

आँखें झरती हैं तुम्हें याद करने से पहले
मेरे दिल में ये कैसी चाह जगा दी है तुमने

मौत के नाम से ही डर लगा करता था
मुझको हर साँस में मरने की सजा दी है तुमने