Friday, December 26, 2008

ये दोस्त तुम्हें याद हो न याद हमारी

ये दोस्त तुम्हे याद हो न याद हमारी
हमको तो साडी उम्र आई याद तुम्हारी

हमने तो खिजाओं में बस फूल हैं ढूंढे
बहार की उम्मीद सी है याद तुम्हारी

दूर रहकर भी बहुत पास तो रहते हो तुम
मेरी सांसों में बसी खुशबु सी है याद तुम्हारी

खवाबो के परिंदे भी उड़कर हर चले हैं
फिर भी नजर न आई सूरत वो तुम्हारी

शायद कंही शहरा में कोई फूल खिल उठे
ऐसा ही कोई खवाब सी है याद तुम्हारी

तेरी यादों से ही रोशन है बस्ती मेरे दिल की
कितनी की कोशिशें न भूली याद तुम्हारी