Saturday, November 8, 2008

लगता है बसंत फ़िर

लगता है बसंत फ़िर आनेवाला है
कली कली को फूल बनानेवाला है
सूखी मुरझाई अमराई में फ़िर मौसम
भौरों की मधुगंध लुटनेवाला है
गुन गुन के स्वर में गा गा कर भवरा
फूलों के दिल में प्यार जगानेवाला है
झांक रहे हैं डाल डाल नूतन किसली
पतझर को मधुमास बनानेवाला है
हवा बहकती है मादक से मौसम में
फ़िर पिया मिलन की आस जगानेवाला ही
काटे नही कटती थी जो अंधियारी राते
उनमे मीठे ख्वाब दिखानेवाला है
कही अनकही रह गई थी कितनी बातें
प्रिय को बसंत सब बात बतानेवाला है