Monday, November 10, 2008

कैसी थीं अंधियारी रातें

कैसी थी अंधियारी रातें अबके सावन में
आंसू बन बरसे थे बादल अबके सावन में

था रंगी मौसम हाथों में हाथ तुम्हारा था
तुमसे बिछड़ कर खूब थे रोये अबके सावन में

थी नहीं मंजूर ज़माने को मेरी कोई खुशी
दर्द के सैलाब थे उमडे अबके सावन में

शोर झमाझम का और बढाता है मेरा गम
नींद न आई पलक द्वारे अबके सावन में

जाने कैसी आग लगायी बैरी पानी ने
जिस्मों जा रहे हैं जलते अबके सावन में
कैसी थी बरसात आसमा सिसक सिसक कर रोया
आँचल अश्कों से भीग गया था अबके सावन में