Wednesday, November 12, 2008

जिन नयनो से

जिन नयनों से नयन मिलें हैं
उन नयनों का हाल न पूछो
हम तो ठगे रह गए ऐसे
क्या था दिल का हाल न पूछो

कवियों ने क्या लिखा नयन पर
सरे काव्य धरे रह जाते
देख अगर जो इनको पाते
क्या होता फ़िर काव्य न पूछो

रातों से स्याही लेकर और
बिजली से चमकार न पूछो
झुकी झुकी नजरों से देखो
कर गए दिल कंगाल न पूछो

सागर की गहरे है पर
उन नयनों में डूबे ऐसे
पर उतरने को भी कोई
है कोई भी नाव न पूछो

आँखें क्या हैं कमल पंखडी
भवरें कैद हो गए इनमें
ऑंखें हैं या मधु के प्याले
पीनेवाले का हाल न पूछो

सबकी राह भुला दे ऐसी
मंजिल की पहचान न पूछो
उनकी नयनों की गलियों में
लुट गए कैसे ये मत पूछो

जीना मरना मुस्किल करके
चल देंगे एक रोज कोई दिन
जिनके हाल बेहाल हुए हैं
उन सब दिल के हाल न पूछो

शब्द हो गए कितने बेवश
कैसे भला बता पायें वो
काजल रात अंधेरे भवरे
किससे उपमा करें न पूछो