Tuesday, November 11, 2008

कितने महलों को बनाकर

कितने महलों को बनाकर के मिटा देती है याद्
मुझको हर रोज नए ख्वाब दिखा देती है याद
दिल में चुपचाप मचलती हैं जो सरगोशियाँ
aur उनको भी तो अश्क बना देती ही याद
जब कभी आँखों से उतर दिल में समां जाते हैं वे
आग इक दिल में मुहब्बत की लगा देती है याद
रोज खिल जाते हैं नये फूल नई खुशबु के
फ़िर भी कोई पीर पुरानी तो जगा ही देती है याद
जिंदगी नाम है दुश्वारियों के सहरा का क्या करें
अकसर जिसमे नए गुलों को खिला देती है याद